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भिलाई। तय था भाजपा के रणनीतिकार अमित शाह पाटन में कोई शतरंजी चाल चलेंंगे। भाजपा के गुप्तचरों ने जो सर्वे किया था उसमें पाटन से पहला नाम विजय बघेल का ही आ रहा था। इसलिए कि पाटन से भूपेश बघेल के अजय योद्धा वाली रफ्तार पर 2008 में भाजपा के रथ पर सवार विजय बघेल ने ही ब्रेक लगाया था। छत्तीसगढ़ की राजनीति में ताकतवर चेहरे बनकर उभरे भूपेश बघेल को पाटन विधानसभा में घेरने की बड़ी रणनीति है। भाजपा की इसी रणनीति का हिस्सा है विजय बघेल को पाटन से भाजपा का प्रत्याशी बनाया जाना। दरअसल विजय बघेल साल भर पहले से ही यह बात सार्वजनिक तौर पर कह रहे थे कि मौका मिला तो वे पाटन से ही चुनाव लड़ेंगे। भाजपा ने उन्हें मौका दे ही दिया।
बीते दो दशक से पाटन विधानसभा सीट पर पूरे प्रदेश की नजर रही। कभी उरला व कुरूदडीह गांव मालगुजरी के लिए जाना जाता था। अब उरला विजय बघेल, और कुरूदडीह भूपेश बघेल के गांव से नाम से जाना जाता है। स्वतंत्रता संग्राम सैनियों का गढ़ पाटन कभी केजूराम वर्मा व अनंतराम वर्मा, चेलाराम चंद्राकर जैसे दिग्गज नेताओं के नाम से जाना था, पाटन अब मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और दुर्ग के सांसद विजय बघेल के नाम से जाना जाता है। अब यह पूरे देश में हाईप्रोफाइल विधानसभा के नाम से जाना जाएगा, इसलिए कि भाजपा विजय बघेल के भरोसे मुख्यमंत्री को पाटन में ही घेर देने का पूरा प्रयास करेगी, वहीं भाजपा के आम कार्यकर्ता पाटन के मतदाताओं को यह संदेश देंगे कि यदि मुख्यमंत्री को विजय बघेल ने हरा दिया तो वे ही छत्तीसगढ़ के अगले मुख्यमंत्री बनेंगे। भाजपा को इससे दोहरा लाभ होगा, भाजपा राष्ट्रवाद के रथ पर सवार तो रहेगी ही, साथ ही छत्तीसगढ़िया वाद के बूते छत्तीसगढ़ के जनमन में गहरे तक उतर चुके भूपेश बघेल के सामने विजय बघेल का छत्तीसगढ़िया चेहरा जनमन तक उतारने का प्रयास करेगी। वहीं कांग्रेस का पास तो यह बड़ा हथियार है ही कि मुख्यमंत्री फिर से भूपेश बघेल ही बनेंगे।
पाटन का विकास कांग्रेस का बड़ा हथियार
निसंदेह मुख्यमंत्री बनने के बाद भूपेश बघेल ने पाटन का विकास किया है। यह कांग्रेस का बड़ा हथियार है। लोग मानते हैं कि साढ़े चार साल में पाटन की तस्वीर और तकदीर बदली है। वहीं भाजपा के पास मुख्यमंत्री के खिलाफ शराब बंदी तथा पाटन में कथित तौर पर बढ़ते अपराध का हथियार होगा। आरोप प्रत्यारोप जमकर होगा। 23 साल की राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने विजय बघेल के खिलाफ कोई टिप्पणी नहीं की थी। जब से भाजपा ने विजय बघेल को चुनाव घोषणा पत्र समिति का संयोजक बनाकर प्रदेश भाजपा का बड़ा चेहरा बनाया है तब से मुख्यमंत्री भी अब बोलने लगे हैं। पाटन के चुनाव में संभावना यह भी है कि दोनों तरफ से तीर जमकर चलेगा।
कौन पड़ेगा भारी ?
निसंदेह विजय बघेल ने मुख्यमंत्री के सामने टिकट लेकर बड़ा साहस का काम किया है, इसलिए कि मुख्यमंत्री पूरे भाजपा के लिए बड़ी चुनौती है, और अब विजय बघेल सीएम के सामने चुनौती बनकर खड़े होंगे। इसका कितना राजनीतिक असर होगा यह तो आने वाला समय बताएगा, पर सांसद विजय बघेल छत्तीसगढ़ भाजपा में एक बड़ा चेहरा जरुर बन गए। पहले लोकसभा का टिकट, उसमें रिकार्ड मतों से एतिहासिक जीत, फिर छत्तीसगढ़ भाजपा का अध्यक्ष बनने की चर्चा, फिर केंद्रीय मंत्री मंडल में शामिल करने की चर्चा, यह तमाम चर्चा बताते है कि राष्ट्रीय नेतृत्व भी कहीं न कहीं विजय बघेल को लेकर छत्तीसगढ़ में कुछ संभावना टटोल रहा है। कहा जा रहा है कि इसी टटोले जाने संभावना का हिस्सा है उन्हें पाटन से टिकट दिया जाना, हारे तो भी कोई बात नहीं क्योंकि छत्तीसगढ़ के सीएम से हारे, जीते तो सोने पर सुहागा।
खैरागढ़ से भी चुनाव लड़ेंगे सीएम ?
इधर यह बात भी जमकर अफवाह के तौर पर उड़ रही है कि मुख्यमंत्री इस बार पाटन के साथ साथ खैरागढ़ से भी चुनाव लड़ सकते हैं। राजनीतिक गलियारों में इसकी जमकर चर्चा है।
चाचा भतीजा क्यों बने चीर प्रतिद्वंद्वी
पहले चाचा (भूपेश बघेल) और भतीजा (विजय बघेल) दोनों कांग्रेस में साथ साथ थे। सन 2000 में नए नवैले भिलाई चरोदा निगम में कांग्रेस से टिकट को लेकर बगावत हो गई। चाचा ने अपने चाचा (स्व. दाऊ श्री श्यामाचरण बघेल) को टिकट दे दिया। विरोध में विजय बघेल ने कांग्रेस छोड़ निर्दलीय ताल ठोक दिया। जीत भी गए। तब से लगातार राजनीतिक कटूता बनी रही।
-सन 2003 में विजय बघेल ने स्व. विद्याचरण शुक्ल की अगुवाई में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ज्वाइन किया। पाटन से टिकट मिला। कांग्रेस प्रत्याशी भूपेश बघेल को जमकर टक्कर दी, पर भूपेश बघेल लगातार तीसरी बार जीतकर अपने नाम रिकार्ड दर्ज कर लिया। 2008 में दोनों फिर आमने सामने हुए। इस बार विजय बघेल को भाजपा ने प्रत्याशी बनाया। विजय बघेल ने भूपेश बघेल को हराकर उनके लगातार जीतने के रिकार्ड पर ब्रेक लगा दिया। 2013 में दोनों फिर आमने सामने थे। इस बार भाजपा प्रत्याशी विजय बघेल को चाचा ने पटकनी देकर अपनी हार का बदला ले लिया। 2018 में भाजपा ने मोतीराम साहू को प्रत्याशी बनाया। वे हार गए। भाजपा ने विजय बघेल को विधानसभा का टिकट ना देकर 2019 में दुर्ग लोकसभा का टिकट दे दिया। विजय बघेल ने रिकार्ड मतों से जीत दर्ज की। अब 23 साल बाद 2023 में चाचा भतीजा फिर आमने सामने हैं, पर इस बार तस्वीर बदली हुई चाचा छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री है तो भतीजा सांसद।
(जारी…)