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भिलाई। डाक्टर चाह ले तो मरीज को विपरित से विपरित परिस्थिति से भी बाहर निकाल सकता है। एक एेसा ही मामला हुआ भिलाई तीन उमदा के डीकेंद्र के साथ। एक हादसे में उसका पैर लगभग काटने की स्थिति में आ गया। दुर्ग जिले के सरकारी अस्पताल के साथ साथ रायपुर के एक बड़े अस्पताल ने कहा कि डीकेंद्र का पैर नहीं बचने वाला, काटना ही पड़ेगा। पर एसबीएस अस्पताल के डाक्टरों ने डीकेंद्र का ना केवल पैर बचा लिया, बल्कि निराश हो चुके मरीज की जिंदगी मे एक नया उत्साह भर दिया।
6 जनवरी 2023 का दिन था। उमदा भिलाई तीन का रहने वाला डीकेंद्र अपनी मोटर साइकिल से घर लौट रहा था। तभी वह एक ट्रक की चपेट में आ गया। ट्रक का पहिया उसके दोनों पैरों पर चढ़ गया। डीकेंद्र को फौरन दुर्ग जिला अस्पताल में दाखिल कराया गया। दुर्ग सरकारी अस्पताल में डीकेंद्र का प्राथमिक उपचार के बाद उसे रायपुर के हायर सेंटर भेज दिया गया। रायपुर के हायर सेंटर ने डीकेंद्र के पैर का ड्रेसिंग किया और उसे घर भेज दिया। एक सप्ताह डीकेंद्र घर पर रहा। इस दौरान उसने तथा परिजनों ने महसूस किया कि उसके पैरों से बदबू आ रही है। परिजन डीकेंद्र को लेकर फिर जिला सरकारी अस्पताल पहुंचे। वहां डाक्टरों ने कहा कि पैर की स्थिति बहुत खराब हो चुकी है, अब पैर काटना ही एक मात्रा उपाय बचा है। पैर काटने की बात सुनकर परिजन घबरा गए। फिर किसी ने उन्हें एसबीएस अस्पताल के बारे में बताया।
13 जनवरी को परिजन डीकेंद्र को लेकर पावर हाउस स्थिति श्री बीरा सिंह अस्पताल पहुंचे। डाक्टरों ने डीकेंद्र के पैर का चेकअप किया तो पाया कि डीकेंद्र को गैंगरीन हो गया है। गैंगरीन की वजह से पैर में बदबू आ रही है। पहले तो अस्पताल के डाक्टरों ने मरीज के पैर का गैंगरीन का सफल इलाज किया। गैंगरीन ठीक होने के बाद हड्डी रोग विशेषज्ञ से सलाह लेकर उसके पैरों को ठीक किया। पैर थोड़ा नार्मल होने के बाद उसके पैर का डापलर टेस्ट किया गया। टेस्ट में पता चला कि मरीज के पैरों में सिर्फ 10 प्रतिशत ही खून दौड़ रहा है।
डाक्टरों ने फिर इसका इलाज शुरू किया। 15 दिन तक मरीज को आइसीयू मे रखा गया। धीरे धीरे पैर में सुधार दिखने लगा। मरीज के पैर के अंगुठे का छोटा सा हिस्सा भर काटना पड़ा, बाकी पूरा पैर डाक्टरों ने सलामत बचा लिया। पैरों में खून भी बराबर पंप करने लगा। एसबीएस अस्पताल के डाक्टरों ने बताया कि मरीज के पैर में गहरे घाव थे। पैर बचा पाना मुश्किल था। दूसरे अस्पताल के डाक्टरों ने इसी वजह से हाथ खड़े कर दिए थे। उन्होंने पैर काटने की बात कही थी, पर एसबीएस अस्पताल के डाक्टरों ने सावधानी से मरीज का इलाज करते हुए ना केवल उसका पैर बचा लिया, साथ ही प्लास्टिक सर्जन को बुलाकर पैरों की प्लास्टिक सर्जरी भी करवा दी।
सबसे अहम बात डीकेंद्र तथा उसके परिजन पूरी तरह से निराश हो चुके थे। उन्हें लग रहा था कि 22 साल के डीकेंद्र का पैर नहीं बचेगा, पर एसबीएस अस्पताल के डाक्टरों ने अपनी ईमानदारी व निष्ठापूर्वक प्रयास करते हुए चमत्कार कर दिखाया। ना केवल डीकेंद्र का पैर बचा, बल्कि उसके व उसके परिजनों में एक नया उत्साह भी भर गया। जो डीकेंद्र दूसरे के सहारे अस्पताल पहुंचा था, वह अपने पैरों पर चलकर घर गया। मरीज का पूरा इलाज आयुष्मान भारत योजना के तहत किया गया।