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July 6, 2024

 Crime Story-एक तरफ फाग गीत तो दूसरी तरफ मौत का तांडव…एक ही रात में दो हत्या…हत्यारा कौन था, हत्या क्यों की जैसे तमाम सवाल…महीनों तक इस अंधे कत्ल का मामला अनसुलझा रहा…फिर आठ महीने बाद कुछ एेसा हुआ कि कातिल पुलिस के चंगुल में फंसता चला गया…चलिए पढ़ते हैं दुर्ग जिले की सनसनीखेज क्राइम कहानी…

 

भिलाई। वह जघन्य हत्या थी। एक बुजुर्ग और मासूम बच्चे को बेदर्दी से मार दिया गया था। बेहद रहस्यमय हत्या । पेचिदा मामला…। पुलिस को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि हत्या का क्या कारण हो सकता है? कोई इतनी बेरहमी से हत्या कैसे कर सकता है? कोई तो बड़ी वजह होगी? किसी बात को लेकर हत्यारा बेहद गुस्से में रहा होगा? आठ माह बाद इस सनसनीखेज हत्याकांड का खुलासा हुआ। आइए जानते हैं कैसे….

16 मार्च 2014 होलिका दहन का दिन। धमधा थानांतर्गत ग्राम रक्सा । उस रात पूरा गांव होलिका दहन के जश्न में डूबा था। होलिका सजी हुई थी। नंगाड़े की थाप पर फाग गीत गाए जा रहे थे। ग्रामीण पूरे उल्लास में थे। उसी रात गांव के एक घर में मौत तांडव कर रही थी। खूनी तांडव। उस घर में मौत ने दस्तक दी। मौत की आहट बेहद दर्दनाक थी। ग्रामीणों को पता नहीं था कि सुबह पूरे गांव में मातम छाने वाला है। अपराध की एक ऐसी कहानी लिखी जा रही है… जिसे सुनकर लोग सालों तक सिहरते रहेंगे। सुबह सचमुच उस गांव में कोहराम मच गया। दहशत फैल गई।

गांव के 70 साल के बुजूर्ग गनपत सतनामी और 14 साल के मासूम बालक सुरेंद्र की लाश घर पर पड़ी थी बुजूर्ग को बेदर्दी से मारा गया था। उतनी ही बेदर्दी से मासूम बच्चे को। मासूम का हाथ-पैर रस्सी से बंधा हुआ था। पूरा कमरा खून से सना हुआ था। कोटवार ने धमधा थाने को सूचना दी। धमधा थाना प्रभारी ब्रजेश कुशवाहा दलबल के साथ मौके पर पहुंचे। गनपत के घर भीड़ जुटी थी। कोई अंदर जाने का साहस नहीं कर पा रहा था। दिल दहला देने वाला मंजर था। जिसने भी देखा उसकी रूह कांप गई। यही हाल पुलिस का भी था। पुलिस ने आला अधिकारियों को सूचना दी। दुर्ग के तत्कालीन एसपी आशीष छाबड़ा व एएसी ग्रामीण भी मौके पर पहुंच गए। क्राइम ब्रांच की टीम को भी ताकीद कर दिया गया। पुलिस ने मौका मुआयना किया। घटना स्थल पर खून आलूदा फावड़ा पड़ा हुआ था।

जांच के दौरान पुलिस ने देखा कि 70 साल के बुजुर्ग गनपत का लिंग कटा हुआ था। पुलिस ने पूरी जांच में इसे अहम बिंदू बनाया। पुलिस नतीजे पर पहुंची। जिसने भी हत्या की वह बेहद गुस्से में रहा होगा। बुजुर्ग से नफरत करता रहा होगा। इस दोहरे हत्याकांड से गांव उबलने लगा। होली का दिन होने की वजह से पुलिस सतर्क थी। कहीं कोई बड़ा बवाल न हो जाए। लिहाजा पूरे गांव को छावनी में तब्दील कर दिया गया। जर्रे-जर्रे में पुलिस । मौके पर भारी भीड़ जुट गई थी। भीड़ में पुलिस संदिग्ध को तलाश रही थी। कातिला गांव का था? परिचित था? रिश्तेदार था? हर एंगल पर जांच…पुलिस सब कुछ खंगाल रही थी । पुलिस ने दोनों लाशों को पंचनामा के बाद पीएम के लिए भेज दिया। पुलिस पीएम रिपोर्ट का इंतजार करने लगी। शार्ट पीएम रिपोर्ट में कहा गया कि दोनों के सिर पर भारी चीज से हमला किया गया है। जिसकी वजह से दोनों की दर्दनाक मौत हुई है।

समय बीतने लगा। नतीजा शून्य था। क्राइम ब्रांच थक चुकी थी। कहीं से कोई सूचना नहीं मिल रही थी। मुखबीर भी कुछ बता नहीं पा रहे थे। थक हार कर पुलिस ने जांच बंद कर दी। लगा कि अब शायद ही मामला सुलझे । गांव वाले वेचैन थे। इस भयानक वारदात से पर्दा हटाना चाहिए, पर राज राज ही बना रहा। आठ महीने बीत गए। गांव वाले भी इस वारदात को लगभग भुलने लगे थे।

आठ महीने बाद

आठ महीने बाद सीएसपी दुर्ग अरूण रंगराजन ने पदभार संभाला। सनसनीखेज हत्याकांड की फाइल पर उनकी नजर पड़ी। खून से लथपथ लाशों की फोटो देख रंगराजन भी सिहर गए। उन्होंने क्राइम ब्रांच के एसएन सिंह, अशोक साहू, प्रधान आरक्षक दिलीप साहू, धमधा टीआई आरपी शुक्ला, प्रधान आरक्षक बेनी सिंह व आरक्षक नरेश बंदे को तलब किया। जांच के संबंध में पूछा। नए सिरे से जांच के आदेश दिए। पुलिस फिर एलर्ट हो गई। मुखबीर सक्रिय हो गए। ग्रामीण के बयान का अध्ययन किया गया। इस दौरान पुलिस की एक बात खटकी। मृतक गनपत के नातिन दामाद राजेंद्र (34) को लेकर। घटना के बाद से यह एक भी बार अपने नाना ससुर से मिलने नहीं आया था। जबकि यह अक्सर आया करता था। पुलिस के पास जैसे ही राजेंद्र का नाम आया। एक दो ग्रामीण भी चौके । ग्रामीणों ने कहा साहब कई बार राजेंद्र का अपने नाना ससुर से विवाद हुआ था। पुलिस ने पूछा किस बात को लेकर? जवाब आया संभवतः राजेंद्र की पत्नी को लेकर। पुलिस का माथा घूमा । राजेंद्र की पत्नी को लेकर विवाद और बुजुर्ग का लिंग काटना दोनों में क्या तालमेल हो सकता है?

पुलिस ने पूरी ताकत इसी दिशा में लगा दी। राजेंद्र का बैकग्राउंड पता किया। वह अपनी पत्नी के साथ अपने नाना ससुर के पास ही रहता था। राजेंद्र ट्रक चलाता था। घटना के कुछ महीने पहले जनवरी माह में वह अपनी पत्नी को लेकर देवरझाल (साजा) चला गया था। पुलिस देवरझाल पहुंची। राजेंद्र घर पर ही मिल गया। पुलिस को देखकर वह थोड़ा सहमा। पुलिस ने उसे हिरासत में लिया। पूछा नाना ससुर की हत्या क्यों की? पहले तो उसने साफ इंकार कर दिया। थर्ड डिग्री का इस्तेमाल होते ही वह टूट गया।

राजेंद्र ने अपने इकबालिया बयान में जो कुछ बताया सुनकर पुलिस भी हैरान रह गई। राजेंद्र बोलता गया। पुलिस सुनती गई। वह घर जंवाई था। उसने बताया कि उसकी पत्नी का चाल चलन ठीक नहीं था। गनपत ने धोखे में रखकर शादी कराई थी। इस बात को लेकर उसका अक्सर अपने नाना ससुर से विवाद होता था। विवाद बढ़ता गया। नाना ससुर ने उसे घर से निकाल दिया। जनवरी महीने में वह घर छोड़कर अपनी पत्नी के साथ अपने गांव आ गया । नाना ससुर द्वारा घर से निकाले जाने को लेकर राजेंद्र बेहद गुस्से में था। वह नाना ससुर से बदला लेने की योजना बनाने लगा। उसने होलिका दहन का दिन चुना।

वह जानता था कि होलिका दहन के दिन गांव के लोग फाग व नंगाड़े की मस्ती में रहेंगे। 16 मार्च की रात वह नाना ससुर के घर पहुंचा। राजेंद्र नशे में था । नाना ससुर सोया हुआ था। पास ही 14 साल का सुरेंद्र भी सोया हुआ था। घर पहुंचते ही राजेंद्र ने नाना ससुर से अपनी पत्नी की बात पर विवाद शुरू किया। विवाद बढ़ गया। पास ही सोया सुरेंद्र जाग गया। वह अचरज भरी नजरों से दोनों का झगड़ा देख रहा था। विवाद इतना बढ़ा कि राजेंद्र ने पास रखे फावड़े गनपत के सिर पर वार कर दिया। खून की धार फूट पड़ी। गनपत वहीं गिर गया। तड़पने लगा। सुरेंद्र डर गया। वह चिल्लाने लगा। नाना को छोड़ देने की विनती करने लगा। राजेंद्र ने सुरेंद्र को पकड़ा। उसे रस्सी से बांध दिया। चुप रहने की हिदायत दी। सुरेंद्र रोने लगा। राजेंंद्र ने देखा कि उसके नाना ससुर की सांसे चल रही, उसने फावड़ा फिर उसके सिर पर दे मारा। दूसरा वार बेहद खतरनाक था। पूरी ताकत से किया गया वार था। दूसरे वार में गनपत ढेर हो गया। राजेंद्र यही नहीं रुका, उसने चाकू से नाना ससुर का लिंग काट दिया।

नाना ससुर की हत्या के बाद वह वापस मूड़ा। घर से बाहर निकलने लगा। फिर उसका ध्यान रोते हुए सुरेंद्र पर गया। उसकी आंखें सिकुड़ी। सोचा यह जिंदा रह तो वह फंस जाएगा। सुरेंद्र सबको बता देगा। वह चश्मदीद गवाह मिटा देना चाहता था। फावड़ा लेकर वह सुरेंद्र के पास पहुंचा। एक भरपूर वार उसके सिर पर किया। धड़ाम। सुरेंद्र का सिर फूट गया। उसके मुंह से दर्दनाक चीख निकली। काफी देर तड़पने के बाद देवेंद्र भी शांत हो गया। फावड़ा वहीं छोड़कर राजेंद्र घर से बाहर निकला। आसपास देखा कोई नहीं था, चारों तरफ सन्नाटा। वह इत्मीनान से वहां से चला गया।

उसने अपने इकबालिया बयान में यह भी बताया कि वह सुरेंद्र को नहीं मारना चाहता था। पर सुरेंद्र चश्मदीद गवाह था, इस वजह से उसने उसे मार दिया। सुरेंद्र की याद उसे सालो सताती रही। इस मामले में राजेंद्र को आजीवन कारावास की सजा हुई।

(घटना पुलिस फाइल से-एहतियातन मृतकों व कातिल का नाम बदल दिया गया है)

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