पति की मौत को बर्दास्त नहीं कर सकी पत्नी, और फिर कुछ ऐसा किया कि जिसने सुना वह दंग रह गया…
जाहिद अली…। हंसमुख जिंदादिल इंसान था। क्रिकेट प्लेयर। उम्र की दस्तक के साथ क्रिकेट छूटा और जिम्मेदारियों का बोछ कंधे पर आ गया। जाहिद ने दोस्ती यारी सबकुछ छोड़कर जिंदगी में आगे बढ़ने की ठानी, दौड़ा भी लगाई और वह लगातार आगे बढ़ता चला गया।
इस बीच मोहल्ले की ही हिंदू लड़की पुष्पा से उसका प्रेम हुआ। दोनों ने घर वालों की रजामंदी से शादी कर ली। पुष्पा का नाम बदलकर निखत अंजुम कर दिया गया, पर पुष्पा के घर वाले न तो इस शादी से खुश थे न उसके नाम बदले जाने से। बाद में उन्होंने पुष्पा जो अब निखत हो चुकी थी उससे दूरी बना ली।
निखत (पुुष्पा) बेहद समझदार थी। वह किसी पर बोझ नहीं बनना चाहती थी। शादी के कुछ साल बाद उसने एक एनजीओ बनाया। सिलाई कढ़ाई सीखी। खुद को आत्मनिर्भर बना लिया। जाहिद व निखत में बेइंतहा मोहब्बत थी। सब कुछ था, पर शादी के 13 साल बाद भी संतान सुख नहीं मिल पाया था। इस बात को लेकर दोनों दुखी रहते थे।
कुछ महीनों से जाहिद की तबीयत थोड़ी नसाज रहने लगी। धीरे-धीरे और बिगड़ने लगी। दो महीने पूर्व इतनी बिगड़ी की वह अस्पताल में दाखिल हो गया। निखत ने उसकी जान बचाने के लिए अकेले ही संघर्ष किया। न परिवार से मदद ली, न जाहिद के किसी दोस्त से मदद की गुहार लगाई। दुर्ग जिला अस्पताल फिर रायपुर के डीके अस्पताल में वह उसका इलाज कराती रही। वह थक चुकी थी, टूट चुकी थी, पर जाहिद के जिंंदा रहते तक उसने अपना हौसला बरकरा रखा, उसे पता था कि जाहिद ज्यादा देर का मेहमान नहीं है, फिर भी उसने जाहिद के सामने आंसू नहीं बहाए।
आखिर दिवाली के दिन जाहिद रुपी एक इंसानी चिराग बुझ गया। निखत उस दिन बिलकुल भी नहीं रोई, खामोश रही। उसने अस्पताल का पूरा बिल चुकाया। लाश को फ्री कर दिया, ताकि लाश ले जाने में किसी को दिक्कत न हो। फिर उसी रात उसने भी अपने खुदकुशी कर ली। निखत मर गई।
जाहिद और निखत दोनों चल बसे। 13 साल पुरानी एक प्रेम कहानी का दर्दनाक अंत हो गया। रविवार शाम भिलाई तीन गांधी नगर स्थित कब्रस्तान में दोनों का अंतिम संस्कार कर दिया गया।